Friday, November 12, 2010


दिल्ली में आकर सबसे पहले तो १० दिन तक दिल्ली में घूमता रहा अच्छी तरह से रास्तों के बारे में मालूमात की ...... अपने भाई जान के साथ रहता था ......और वो इलाका था गढ़ी का ..... बड़ा मजा आया ....दिल्ली घुमने का ....फिर क्या था येही कॉलेज में इग्नू में मैंने परवेश ले लिया ...और साथ ही एक टेक्नीकल  कोर्से के लिए भी मेरी पढ़ाई शुरू हो गई ......................

Monday, November 8, 2010


इस तरह से हमारी दोस्ती आगे बढती गयी और फिर वो दिन भी सामने आया .....जिसके बारे में हमने सोचा भी न था ......हमारी आई. एस सी की पढाई पूरी हुई मैं ने परीक्षा पास कर लिया और रवि ने भी .....लेकिन रवि उसी कॉलेज में आगे की पढ़ाई करता रहा  .... परन्तु  मेरे परिवार वालों ने मुझे आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली भेजना ठीक समझा और मैं सन १९८९ इश्वी में  दिल्ली आ गया ..........और हमारे न चाहने के बावजूद हमें एक दुसरे से जुदा होना पड़ा .....

Thursday, November 4, 2010


यह भी एक बड़ी अजीब इत्तफाक है के पहले दिन पहली दफा की मुलाकात में मैंने उसे अपना नाम राज और उसने अपना नाम रवि बताया .....जो की ही उस ज़माने में (१९८६) में.... हमारा  निक नाम था  ....उसका असल नाम उमेश और मेरा रेयाज़ .....दुसरे दिन इसबात का खुलासा होने पर दोनों ही बड़े जोर से ठहाका लगाकर हंसने लगे .....और फिर हम दोनों एक अच्छे दोस्त की तरह रोज एक साथ कॉलेज आते पढ़ाई करते और शाम को घर चले जाते .......

Tuesday, November 2, 2010


उर्स में हिस्सा लेने के बाद मेले में घुमने का और खाने पिने का बड़ा मजा आता था...आज भी जब याद आती है वहां की तो उसमे सरिक होने को जी चाहता है .....इंसा अल्लाह फिर अगर मौका मिला तो जरूर तसरीफ ले जाऊंगा... जब कॉलेज में पहले दिन मेरी एंट्री हुई तो उस वक़्त बड़ी मुस्कील से अपने क्लास रूम का पता लगा .... जब उसमे दाखिल हुआ तो कोई भी नहीं था.... मैं एक सीट पे बैठ गया ..... थोड़ी देर के बाद एक और बिद्यार्थी आया ..... कुछ देर तक तो हम दोनों खामोस बैठे रहे ..... फिर उसने मुझसे मेरे बारे में पूछा और मैंने उसके बारे में इस तरह से हमारी जान पेहछान हो गई और हम दोनों दोस्त बन गए .... उसका नाम रवि है .....