Sunday, October 31, 2010


परन्तु फिर भी मैंने उम्मीद का दामन  नहीं छोड़ा.... खैर सिवान से हंसी खुसी मैं अपने घर को लौट गया.... और फिर अपने कॉलेज की त्यारियों में जुट गया..... इसोपुर में मैं उन दिनों अपने मामा के घर में रुका अपने कॉलेज की आगे की सिक्षा को पूरी करने के लिए .... इसोपुर , फुलवारी शरीफ के ही बगल में  है...वहां पे एक बहुत बड़ा खानगाह है ... जहाँ पर हर साल उर्स ( मेला) लगता है....

Friday, October 29, 2010


बिश्वम्भर नाथ जी का घर काफी बड़ा था ....और वे खुद भी बड़े अच्छे इंसान थे .... उनके परिवार से मिलकर बहुत खुसी हुई ...... उन्होंने मेरे मेहमाननवाजी में किसी तरह की कमी नहीं होने दी ......इस तरह से दुसरे दिन मैंने अपनी प्रतियोगिता में भाग लिए .... खैर उस प्रतियोगिता में मैं दुर्भाग्यवास कामयाब न  होसके ......

Wednesday, October 27, 2010



मैंने पूछा वो किसलिए ? तो उन्होंने बड़े ही खुशमिजाजी लहजे में कहा... आप मेरे मेहमान होंगे और मैं आपको सिवान के ऐतिहस्सिक स्थलों का दर्शन कराये बगैर कैसे जाने दे सकता हूँ ? ...... इसतरह से बात चित का सिलसिला चलता रहा ..... और हुमदोनो सिवान पहुचकर बस से उतारकर रिक्शा पे बैठ कर विश्वम्भर नाथ जी के घर की तरफ अग्रसर हो गए......

Tuesday, October 26, 2010


मेरा जवाब सुनकर उन्होंने मुझे अपने घर में मेहमान नवाजी का प्रस्ताव रख दिया ......
मैं फिर एक पल हो खामोश रहा फिर ......उन्होंने मुझसे मुखातिब होकर कहा के .... लगता है आप घबरा रहे है.... इसपर मैंने जवाब दिया .... नहीं अगर आप चाहते है तो अवस्य मैं आप के यहाँ मेहमान बनकर रुक सकता हु और वैसे भी मेरा एक्जाम सिर्फ एक दिन का ही है ...... इस पर उन्होंने ने कहा के कमसे कम आप दो दिन रुकें.....

Monday, October 25, 2010


फिर उनकी तरफ मुखातिब होकर मैंने उनकी बातों को नकारते हुए ....मैंने बोला ... नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है .... फिर उनको मैंने अपने बारे में विस्तार से बताया ...और फिर उनके बारे में भी जानकारी हासिल की.... बस ने लगभग आधी दुरी तय कर ली थी... इस तरह से बात आगे बढती चली गयी... फिर विश्वम्भर नाथ सिंह जी ने मुझसे पुचा...
क्या सिवान में आपके कोई जानने वाले हैं .... मैंने कहा नहीं तो ...इसलिए बिस्वम्भर जी ने मुझसे पूछा फिर आप वहां कहाँ रुकेंगे ?...मैंने जवाब दिया .. जहाँ सभी परिच्छार्थी रुकेंगे वहीँ मैं भी रुक जाऊंगा .......

Sunday, October 24, 2010


बस में जैसे ही अपनी सिट पे बैठा था के मेरी सिट के पास आकर एक सज्जन खड़े हो गए .... कुछ देर तक तो खामोश मैं भी रहा और वो भी परन्तु बस ने जैसे ही कुछ दुरी तय कर लिथि के मेरी सीट पे ही बगल वाली सीट खली हो गयी और वो बैठ गए....... फिर कुछ देर के बाद उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ी और मुझ से पुच बैठे .... आप कहाँ तक जावोगे ? ..... मैंने जवाब दिया मुझे सिवान जाना है .... मुझे एक प्रतियोगिता में भाग लेना है.......
फिर उन्होंने मुझ से विस्तार में मेरे बारे में जानकारी लेने लगे .......मैं एक पल को खामोश हो गया और सोंचने लगा ये मेरे बारे में इतना सबकुछ क्यों जानना चाहते हैं ? .....और वो भी एक अजनबी इन्शान जिसके बारे में मैं तो कुछ भी नहीं जनता....
इस तरह से मुझे खामोश देखकर उन्होंने मेरी चुप्पी तोड़ी और मुझसे पूछने लगे .....आप इतने खामोश कों बैठे हैं ?....................

Friday, October 22, 2010


कॉलेज में क्लास अभी लगने शुरू नहीं हुए थे सो मैंने एक नौकरी के लिए जो की बिहार सरकार ने उस समय निकली थी आवेदन कर दिया .......उसके परीक्षा के लिए कॉल लैटर मेरे पास आ गया ... सो मैं तयार होकर सिवान जाने के लिए उतावला हो गया ..... अपने मम्मी पापा के सहयोग से मैं जाने के लिए तैयार होकर बस स्टॉप पर गया .....वहां मेरे साथी क्रिस्नंदन जी मिले और उन्होंने भी मुझे परीक्षा में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया .....और यही नहीं वो अपने काम से पटना जा रहे थे अतः मुझे भी हार्डिंग पार्क पटना तक साथ लगाये .... उस समय उनकी ट्रांसपोर्टरोंन से अच्छी जान पहचान थी .... इसलिए सिवान जाने वाली बस में मुझे बिठाकर वहां से क्रिश्नंदन जी अपने गंतव्य की ओरे चले गए.............

Thursday, October 21, 2010


एक बार स्कूल में अच्छा परफोर्म करने के लिए...मुझ उस समय के एक मंत्री महोदय के द्वारा पुरस्कार वितरण समारोह में पुरस्कार से सम्मानित किया गया....जिसके प्रेरणा स्वरुप मेरे जीवन में लेखन के प्रति भी रूचि बढ़ने लगी ....हालांके उस्ससे पहले आयोजित कार्यक्रम...जो की कल्चरल प्रोग्राम था ....उसमे दोस्तों के द्वारा प्रेरित किये जाने पर मैंने अपनी रचना से लोगों को मंत्र गुग्ध किया....जिसमे समय की महत्ता का मैंने उल्लेख किया था.....परन्तु वो कुछ खास ज्यादा चर्चित न हो सका .....परन्तु जिसको ध्यान में रखकर वो रचना लिखी गयी थी उन्हें  वो बहुत पसंद आयी.....फिर उन्होंने वो रचना मुझसे मंगवाई और मैंने उनको सौंप दी....फिर मैं लेखन की क्रिया में अपने आप को आगे बढ़ता चला गया .....क्यों के मुझे पूर्ण विश्वास था और आज भी है के एक न एक दिन मुझे सफलता जरूर मिलेगी ...और फिर स्कूल का समय गुजरता चला गया....क्लास में सफलता की सीढियों को पार करता हुआ आखिरकार मैंने बोर्ड की परीक्षा अच्छे अंको से सन- १९८६ इश्वी  में  पास कर ली ....उसके बाद पटना में ए.न कॉलेज में दाखिला ले लिया .......

Wednesday, October 20, 2010

 


चारो तरफ हरियाली छाई हुई थी....खेत के पगडण्डी पे मैं दौड़ रहा था, तब मेरी उम्र यही कोई ७ साल की रही होगी ....मैं हाल्फ पैंट में ही था... लेकिन दिल में बहुत सरे ख्वाब सजाये हुए... अपने गाँव की ताज़ी हवाओं का आनंद ले रहा था .......फिर कुछ देर के बाद घर आ कर चुप चाप बैठ गया .....मेरी दिनचर्या उस समय कुछ ख़ास तो नहीं थी ....परन्तु कुछ पढ़ना लिखना ...खेलना कूदना और खा पि कर रात को निंदभर सो जाना....इस तरह से वक़्त निकलता गया.... मैं गाँव के स्कूल से पास होकर ....पास ही गाँव के ...पक्की पर ( शिव पुर ) मिडल स्कूल में डाल दिया गया .......उसके बाद फिर बघाकोल हाई स्कूल में मेरा दाखिला हो गया .....और आगे की पढ़ाई लिखाई शुरू हो गई ..............................