परन्तु फिर भी मैंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा.... खैर सिवान से हंसी खुसी मैं अपने घर को लौट गया.... और फिर अपने कॉलेज की त्यारियों में जुट गया..... इसोपुर में मैं उन दिनों अपने मामा के घर में रुका अपने कॉलेज की आगे की सिक्षा को पूरी करने के लिए .... इसोपुर , फुलवारी शरीफ के ही बगल में है...वहां पे एक बहुत बड़ा खानगाह है ... जहाँ पर हर साल उर्स ( मेला) लगता है....
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