मेरी माताजी के देहांत के कुछ ही महीनो के बाद मेरे बड़े बेटे का जन्म हुआ ...उस समय मेरी श्रीमतीजी मेरे पैत्रिक स्थान बघाकोल में ही थी ..और मैं Technocom दिल्ली में ...लेकिन मुझे फ़ोन के द्वारा यह सुभ समाचार मिल गया ...सुनकर अति प्रसंता हुई मैं अपने बेटे को देखने के लिए लालायीत हो गया ...वो साल सन २००० इश्वी का और फरवरी का महिना था ...दो तिन महीने बाद छुट्टी लेकर फिर एक बार घर जाने का मौका मिला ..अपने परिवार के साथ कुछ दिन बिताने के बाद पुनः हम सब दिल्ली आ गए ...फिर अपने बड़े बेटे के साथ ख्वाजा जी के दर पे हाजिरी दी उस समय मेरा बेटा अजाज़ (अमन ) येही कोई पांच साल का रहा होगा ...फिर Technocom के अपने साथियों के साथ आगरा तो कभी शिमला तो कभी नैनीताल भी घुमने का मौका मिला .... क्योंकि की हमलोग हर साल कहीं न कहीं घुमने जाते थे .....उन दिनों घुमने का आनंद भी बहुत आता था ....फिर कुछ साल बीत जाने के बाद अपनी सरीके हयात और अपने छोटे बेटे निजाम के साथ भी अजमेर शरीफ जाने का मौका मिला और ख्वाजा जी के दर पे हाजिरी दी...वाकई बहुत अच्चा लगा और वैसे भी वो उर्स का वक़्त था ....और फिर कुछ समय के बाद मैंने Technocom को किसी वजह से अलविदा कह दिया और मैं BPO सेक्टर में आ गया ....३-४ साल का वक्त किस तरह से निकल गया इसका तो पता भी न चला ....लेकिन हाँ कुछ खट्टी तो कुछ मीठी यादें जरूर मेरी जिंदगी के साथ जुड़ गयी...जो अच्छी बात रही वो यह की अनुभव बहुत मिला लेकिन जो बुरी बात रही वो यह की इस काम की वजह से मेरी दोनों कानो को काफी नुक्सान पहुंचा ....और इसी बुरे प्रभाव की वजह से मुझे BPO सेक्टर को अलविदा कह देना पड़ा ...और मार्च २०१० में मैंने एक GCC Approved कंपनी को ज्वाइन कर लिया ...मेरे तीनो ही बेटे बड़े ही चंचल है जिनके साथ घर में या बाहर जब घुमने जाते है तो खूब आनंद आता है और हस्ते बोलते हुए समय का पता ही नहीं चल पता के कब वक़्त बीत गया......... .....
Wednesday, December 29, 2010
मेरी माताजी के देहांत के कुछ ही महीनो के बाद मेरे बड़े बेटे का जन्म हुआ ...उस समय मेरी श्रीमतीजी मेरे पैत्रिक स्थान बघाकोल में ही थी ..और मैं Technocom दिल्ली में ...लेकिन मुझे फ़ोन के द्वारा यह सुभ समाचार मिल गया ...सुनकर अति प्रसंता हुई मैं अपने बेटे को देखने के लिए लालायीत हो गया ...वो साल सन २००० इश्वी का और फरवरी का महिना था ...दो तिन महीने बाद छुट्टी लेकर फिर एक बार घर जाने का मौका मिला ..अपने परिवार के साथ कुछ दिन बिताने के बाद पुनः हम सब दिल्ली आ गए ...फिर अपने बड़े बेटे के साथ ख्वाजा जी के दर पे हाजिरी दी उस समय मेरा बेटा अजाज़ (अमन ) येही कोई पांच साल का रहा होगा ...फिर Technocom के अपने साथियों के साथ आगरा तो कभी शिमला तो कभी नैनीताल भी घुमने का मौका मिला .... क्योंकि की हमलोग हर साल कहीं न कहीं घुमने जाते थे .....उन दिनों घुमने का आनंद भी बहुत आता था ....फिर कुछ साल बीत जाने के बाद अपनी सरीके हयात और अपने छोटे बेटे निजाम के साथ भी अजमेर शरीफ जाने का मौका मिला और ख्वाजा जी के दर पे हाजिरी दी...वाकई बहुत अच्चा लगा और वैसे भी वो उर्स का वक़्त था ....और फिर कुछ समय के बाद मैंने Technocom को किसी वजह से अलविदा कह दिया और मैं BPO सेक्टर में आ गया ....३-४ साल का वक्त किस तरह से निकल गया इसका तो पता भी न चला ....लेकिन हाँ कुछ खट्टी तो कुछ मीठी यादें जरूर मेरी जिंदगी के साथ जुड़ गयी...जो अच्छी बात रही वो यह की अनुभव बहुत मिला लेकिन जो बुरी बात रही वो यह की इस काम की वजह से मेरी दोनों कानो को काफी नुक्सान पहुंचा ....और इसी बुरे प्रभाव की वजह से मुझे BPO सेक्टर को अलविदा कह देना पड़ा ...और मार्च २०१० में मैंने एक GCC Approved कंपनी को ज्वाइन कर लिया ...मेरे तीनो ही बेटे बड़े ही चंचल है जिनके साथ घर में या बाहर जब घुमने जाते है तो खूब आनंद आता है और हस्ते बोलते हुए समय का पता ही नहीं चल पता के कब वक़्त बीत गया......... .....
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